सोमवार, 16 नवंबर 2009

भास्ताचार और विकास

भ्रस्ताचार और विकास दोनों का सम्बन्ध विरोधात्मक है। देश के विकास के लिए आवंटित राशि कितनी भी हो, उसका थोड़ा प्रतिशत ही सरजमीं पर उतर पता है। भ्रष्टाचार का जाल इतना चक्रव्युहपूर्ण है कि koई भी राशि भ्रश्स्ताचारियों कि जेब से उतनी ही अधिक होती है कि काम होने कि औपचारिकता मात्र पूरी हो सके। इस हकीकत को ऊपर से नीचे तक सभी जानते है। सांसद से समाज तक, शहर से देहात तक, प्रेस से किताब तक सभी जानते हैं, किंतु भ्रस्ताचार को नियंत्रित कराने जैसी कार्रवाई कभी नहिः हो पाती। क्या हमारी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था की नियति यही है? व्यवस्था-संचालकों को, विकास के रत लगाने वालों को इसका जवाब देना होगा। वरना इस व्यवस्था से लोगों का विश्वास टूट जाएगा।

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