रविवार, 14 दिसंबर 2008

विकास लक्ष्य अन्तिम व्यक्ति तक

इन्सान अपने तक़दीर का मालिक है, क्योंकि वह अपने तदवीर से उसे संवार सकता है। किंतु आजाद जन्म लेने के बाद भी वह समान क्षमता एवं कुसाग्रता सम्पन्न न होने के कारण विकास की दौर में दूसरों के साथ समान में नहीं रहता। फलत:, उसे विकास-पथ पर अग्रसर कराने के लिए संरक्षात्मक विशेष सुविधा की आवश्यकता है। ऐसा करके उसे विकास के रास्ते पर अग्रसर किया जा सकता है। विकसित इन्सान का यह दायित्व हो जाता है कि वह इन पिछडे भाइयों को विकास के राजपथ पर चलने के लिए न सिर्फ़ प्रेरित करे , बल्कि इसके लिए वह उचित व्यवस्था भी करे। आज के ज़माने में ऐसी बहुत संस्थाएं हैं जिनका उद्देश्य है ऐसे लोगों का उन्नयन । आज के आईटी के ज़माने में इनसे सम्पर्क करना आसान है। इसका लाभ इन अन्तिम लोगों तक पहुँचाना उद्दात धेय है जिसके लिए हम कृत संकल्प हैं।

2 टिप्‍पणियां:

  1. हमलोग आज जहाँ भी हैं, जो भी हैं समाज के बदौलत है। हम पर समाज का बहुत ऋण है, जिसे हम अपनी सदाशयता से कम तो कर सकते हैं पर चुका नहीं सकते। हमारा यह परम कर्तव्य बनता है कि जो भी बन पड़े, जितना भी हो सके हम हाशिये पर छूट गये भाइयों के उत्थान के लिये कुछ रचनात्मक काम करें। समाज में पिछड़े लोग चूंकि बौद्धिक रुप से भी तो काफी पिछड़े होते हैं, जिससे उन्हें अपने लिए चलायी जा रही बहुत सारी योजनाओं की जानकारी नहीं होती और वे उसका उचित फायदा नहीं उठा पाते। मैं यथासंभव प्रयास करता हूं इनके बेहतरी के लिए और करुँगा, साथ ही मेरा विनम्र आग्रह है सबसे कि सबलोग अपने आसपास जरुरतमंद लोगों को हर तरह से सक्षम बनाने का प्रयास करें।

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  2. jinke lekhan me vinamra aagrah ho,wahan main tippani kya karun,bas in vichaaron ke aage natmastak hun.....

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